भागलपुर: बात लगभग 40 साल पहले की है, जब कहलगांव प्रखंड के घोघा पंचायत स्थित आठगामा-पन्नूचक गांव में कोई भी मैट्रिक पास नहीं था। 1977 में आठ हजार की आबादी वाले इस गांव में श्रीकांत अकेले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने न केवल मैट्रिक पास किया बल्कि फर्स्ट क्लास से पास हुए। इसके बाद तो उन्होंने ठान लिया कि अपने गांव को शिक्षित करके ही दम लेंगे।
अब पूछते हैं किसी ने फेल तो नहीं किया…
उस वक्त गांव के लोग मैट्रिक का रिजल्ट आने के बाद पूछते थे कि किसी ने मैट्रिक परीक्षा पास किया है क्या? अब लोग कहते हैं कि किसी ने फेल तो नहीं किया? यह बदलाव आया है एक किसान के बेटे श्रीकांत के संघर्ष से। जब श्रीकांत ने मैट्रिक पास किया था, तब इलाके में अशिक्षा के कारण अपराध का बोलबाला था। वे चाहते थे कि बंदूक की जगह लोग कलम की संस्कृति अपनाएं, तभी समाज का विकास संभव होगा। उन्होंने पढ़ाई जारी रखी और 1985 में भागलपुर विश्वविद्यालय से अंग्रेजी से एमए किया। फिर डबल एमए। इसके बाद पीएचडी की डिग्री हासिल की।
गुरु ने कहा- सोसाइटी के लिए कुछ करो
वह जिस गंगोत्री (अत्यंत पिछड़ा वर्ग) समाज से आते हैं, उन्हें विश्वविद्यालय में आसानी से लेक्चरर की नौकरी मिल जाती। लेकिन उस वक्त उनके गुरु अनिरुद्ध प्रसाद सिंह ने उनसे कहा कि अपने समाज के लिए कुछ करो। इसके बाद यही उनकी जिंदगी का जैसे मकसद बन गया। गांव में सामाजिक बुराइयां भी थीं। इसलिए इन सबसे मुक्ति के लिए उन्होंने 1987 में मुक्ति निकेतन बनाया। यहां बच्चों को पढ़ाया जाने लगा। 29 साल बाद अभी इस स्कूल में 700 बच्चे हैं। इसके बाद तो उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। इस दौरान हजारों लड़के-लकड़ियों को पढ़ाया। आज उनसे पढ़कर निकले बच्चे सरकारी और गैर सरकारी संस्थानों में अच्छी तनख्वाह पर नौकरी कर रहे हैं।
Source: Bhaskar.com