वॉशिंगटन. आसमान को देखने का अंदाज बदलने वाला है। साइंटिस्ट्स ने ब्रह्मांड का म्यूजिक सुन लिया है। वह म्यूजिक, जिसकी कल्पना 1916 में अल्बर्ट आइन्स्टीन ने की थी। हालांकि, उनका एक दावा झूठा हो गया कि इसे साइंटिस्ट कभी सुन नहीं पाएंगे। यह यूनिवर्स का म्यूजिक है, ग्रैविटेशनल फोर्स की वेव्ज।
इंडियन साइंटिस्ट्स भी थे प्रोजेक्ट में शामिल…
– एस्ट्रोफिजिक्स के साइंटिस्ट की इंटरनेशनल टीम ने इन्हें सुनने का दावा किया है।
– करीब 1.3 लाख करोड़ साल पहले दो ब्लैक होल्स टकराए थे।
– इससे जो वेव्ज पैदा हुईं, वह पृथ्वी पर 14 सितंबर, 2015 को आईं।
– इसे 1.1 बिलियन डॉलर (75 अरब रुपए) से बने दो अंडरग्राउंड डिटेक्टर की मदद से पकड़ा गया।
इंडियन्स के डाटा एनालिसिस से संभव हुई सदी की बड़ी खोज
लिगो (LIGO) प्रोजेक्ट में इंडियन साइंटिस्ट्स ने डाटा एनालिसिस समेत कई बड़े रोल निभाए। राजा रमण सेंटर फॉर एडवांस्ड टेक्नोलाॅजी इंदौर, इंस्टीट्यूट ऑफ प्लाज्मा रिसर्च गांधीनगर, इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनामी एंड एस्ट्रोफिजिक्स, पुणे सहित कई संस्थान इस प्रोजेक्ट से जुड़े थे।
क्या किया इंडियन साइंटिस्ट्स ने ?
– LIGO (लेजर फेरोमीटर ग्रैविटेशनल वेव ऑब्जर्वेटरी) डिटेक्टर के सिग्नल का अंदाजा लगाना।
– ऑर्बिटल सेंटर से निकलने वाली एनर्जी को कंट्रोल करना। फाइनल ब्लैक होल के वजन और स्पिन का अंदाजा लगाना।
– मर्जर के दौरान रेडिएशन से निकलने वाले पावर और एनर्जी का अंदाजा लगाना।
– इस बात को कन्फर्म किया कि साइंटिस्ट्स को मिले सिग्नल का आइन्स्टीन की थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी के साथ कनेक्शन है।
– ऑप्टिकल टेलिस्कोप का इस्तेमाल करते हुए इलेक्ट्रो-मैग्नेिटक काउंटरपार्ट को सर्च करना।
क्या दिया गया नाम…
– इसे अति-संवेदी लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रैविटेशनल वेव ऑब्जर्वेटरी या ‘लिगो’ नाम दिया गया है। महीनों के परीक्षण के बाद इसे कन्फर्म किया गया।
– कुछ साइंटिस्ट इस रिसर्च को 2012 की ‘हिग्स बोसॉन’ यानी गॉड पार्टिकल की रिसर्च के बराबर बता रहे हैं। कुछ उससे बढ़कर।
– इस प्रोजेक्ट को अमेरिकी नेशनल साइंस फाउंडेशन के डायरेक्टर फ्रांस कोर्डोवा ने वित्तीय मदद दी है।
– उन्होंने कहा, “गैलीलियो ने टेलिस्कोप को आसमान की ओर उठाकर एस्ट्रोफिजिक्स की शुरुआत की थी। हमारी खोज यूनिवर्स के कई रहस्यों को सामने लाएगी। अनएक्सपेक्टेड डिस्कवरी की ओर लेकर जाएगी।”
साइलेंट फिल्म के बोल जैसा एक्सपीरियंस
– लिगो टीम के लीडर और मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) के डेविड शूमाकर ने कहा, “वेव्ज वैसी ही हैं, जैसी आइन्स्टीन ने कल्पना की थी।”
– इसकी तीव्रता 20-30 हर्ट्ज की है। बास गिटार का सबसे कमजोर नोट।
– एक सेकंड के छोटे-से हिस्से में 150 हर्ट्ज या उससे भी ज्यादा तीव्रता पर जाने वाली आवाज। पियानो के मिडल सी के बराबर।
– वहीं, टीम के एक अन्य मेंबर शेबोल्क मार्का ने कहा, “हमारे लिए आसमान को देखने का नजरिया बदल गया है। यह साइलेंट फिल्म में बोल पड़ने जैसा एक्सपीरियंस है।”
आइन्स्टीन का विश्वास डगमगा गया था
– अल्बर्ट आइन्स्टीन ने 1916 में थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी के नियम के साथ ग्रैविटेशनल वेव्ज का सिद्धांत दिया था।
– उन्होंने कहा था कि ये वेव्ज इतनी हल्की हैं कि इन्हें पकड़ना बेहद मुश्किल है। साइंटिस्ट इसे पकड़ नहीं पाएंगे।
– इन वेव्ज पर से 1930 के दशक में तो उनका ही भरोसा उठने लगा।
– लेकिन 1970 के दशक में साइंटिस्ट ने पहली बार अप्रत्यक्ष सबूत हासिल किया था।
– इसके लिए उन्हें 1993 का फिजिक्स का नोबेल प्राइज भी मिला था।
– उन्होंने बताया था कि दो सितारों के टकराने से उनकी कक्षाओं में मामूली अंतर आ गया है।
– नई खोज सीधे-सीधे ग्रैविटेशनल वेव्ज को पकड़ने की है।
Source: Bhaskar.com