पटना: वशिष्ठ नारायण सिंह ने कई ऐसे रिसर्च किए हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि आज भी उस रिसर्च का अध्ययन अमेरिकी स्टूडेंट्स कर रहे हैं। ऐसा कहा जाता है कि डॉक्टर सिंह ने आइंस्टीन के सिद्धांत E= MC2( इ= एमसी स्क्वायर) को चुनौती दी थी।
सीजोफ्रेनिया से हैं ग्रसित
– भोजपुर के रहने वाले डॉक्टर वशिष्ठ नारायण सिंह पिछले 41 सालों से सीजोफ्रेनिया (मानसिक बीमारी) से जुझ रहे हैं।
– हाल ही में उन्हें सड़क पर पागलों सा घूमता देखा गया था। तब कोई उन्हें पहचान तक नहीं पाया था।
– फिलहाल, वे पटना के एक अपार्टमेंट में गुमनामी का जीवन बिता रहे हैं।
किताब, कॉपी और एक पेंसिल उनकी सबसे अच्छी दोस्त
-पटना में उनके साथ रह रहे उनके भाई अयोध्या सिंह बताते हैं कि अमेरिका से वह अपने साथ 10 बक्से किताबें लाए थे, जिन्हें वे आज भी पढ़ते हैं।
-उन्होंने बताया कि छोटे बच्चे की तरह ही उनके लिए तीन-चार दिन में एक बार कॉपी, पेंसिल लानी पड़ती है।
– कहा जाता है कि जब वे नासा में काम करते थे तो एक बार अपोलो की लॉन्चिंग से पहले 31 कंप्यूटर कुछ समय के लिए बंद हो गए।
– इस दौरान उन्होंने पेन और पेंसिल से ही कैलकुलेशन करना शुरू किया।
– जब कम्प्यूटर ठीक हुआ तो उनका और कम्प्यूटर्स का कैलकुलेशन बराबर था।
इन्होंने पहचाना था वशिष्ठ की प्रतिभा को
बताया जाता है कि वशिष्ठ जब पटना साइंस कॉलेज में पढ़ते थे तभी कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जॉन कैली की नजर उन पर पड़ी। कैली ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और 1965 में वे वशिष्ठ को अपने साथ अमेरिका ले गए। साल 1969 में उन्होंने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से PHD की और वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर बने। नासा में भी काम किया लेकिन मन नहीं लगा और 1971 में भारत लौट आए। फिर यहां उन्होंने IIT कानपुर, फिर IIT मुंबई, और फिर ISI कोलकाता में नौकरी की।
उतार-चढ़ाव भरा है जीवन
– डॉ. वशिष्ठ बिहार के आरा स्थित बेहद पिछड़े वसंतपुर गांव में गरीब परिवार में जन्मे।
– नेतरहाट विद्यालय से मैट्रिक किया। संयुक्त बिहार में टॉपर रहे।
– पटना साइंस कॉलेज में पढ़ाई के दौरान कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के गणितज्ञ प्रो. जॉन एल केली ने उनकी प्रतिभा पहचानी।
– प्रो. केली उन्हें उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका ले गए। वहां साइकिल वेक्टर स्पेश थ्योरी पर पीएचडी की और वाशिंगटन विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर बने।
– नासा में काम करने का मौका मिला। अमेरिकी सरकार ने रोका तो भारत लौटे।
– आईआईटी कानपुर, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च और भारतीय सांख्यिकी संस्थान जैसे प्रसिद्ध संस्थानों में काम किया।
– फिलहाल 35 साल से सिजोफ्रेनिया नाम की मानसिक बीमारी हुई। लंबी बीमारी से परेशान पत्नी ने साथ छोड़ा।
– वर्तमान में बेहद गरीबी में जीवन जी रहे हैं, परिजन इलाज कराने में सक्षम नहीं हैं।
फिल्म बनाने की थी तैयारी
वशिष्ठ के जीवन पर भी बायोपिक फिल्म बनाने की तैयारी थी। फिल्म डायरेक्टर अनुराग बसु ने उनकी फैमिली से मिलकर इसकी मंजूरी ली थी। लेकिन फिलहाल इस बारे में कोई रिपोर्ट्स नहीं है।
Source: Dainik Bhaskar