छपरा: छपरा के दिव्यांग वीरेंद्र साह ने व्यवस्था से लड़ने की जुर्रत क्या उठाई उसे नक्सली करार दे दिया गया। 9 सालों तक व्यवस्था से संघर्ष के बाद भी वह थका नहीं बल्कि आरटीआई को हथियार बनाया।
दरअसल, उसका चयन शिक्षक भर्ती के लिए हो चुका था लेकिन फाइनल सूची में रिश्वत नहीं देने के कारण उसका नाम काट दिया गया था। उसने 21 अफसरों के पास करीब 85 बार आवेदन कर शिक्षकों की भर्ती के बड़े फर्जीवाड़े की पोल खोली। कोर्ट ने सैकड़ों शिक्षकों की भर्ती रद्द की। आखिरकार उसे और उसकी बहन को शिक्षक भर्ती के लिए बहाल कर दिया गया।
आरटीआई से मिले सबूत लेकर हाईकोर्ट गए, बड़े घोटाले का पर्दाफाश
शिक्षक भर्ती के लिए वीरेंद्र साह व उसकी बहन आरती कुमारी की अक्टूबर 2006 को पंचायत सचिव के समक्ष काउंसलिंग हुई। प्रथम पैनल में नाम भी आया। पंचायत के एक प्रतिनिधि ने रिश्वत की मांग कर दी। रिश्वत नहीं दे सका, तो फाइनल सूची से नाम हटा दिया गया। फर्जी तरीके से दूसरे अभ्यर्थियों को बहाल कर लिया गया।
वीरेंद्र ने फर्जीवाड़े की शिकायत 21 अफसरों तथा 13 मंत्री व सांसदों से की। हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इंसाफ नहीं मिला। दोबारा आरटीआई के सहारे सबूत ले हाईकोर्ट गए और अंतत: बड़े घोटाले का पर्दाफाश हुआ। उन्हें बहाल किया गया। शिक्षक बन चुके वीरेंद्र का बस एक ही उद्देश्य है, ‘लोगों को शिक्षित बनाओ और हर नागरिक में संघर्ष का इतना माद्दा भर दो कि वह व्यवस्था से जंग जीत सके।’
Source: Dainik Bhaskar