पूर्णिया में महाराज दरभंगा की गायब 15 हजार एकड़ जमीन का मामला तीस सालों से उलझा हुआ है। अरबों की जमीन फिलहाल कानून की पेचीदगियों में उलझ कर रह गया है। इस बेशकीमती जमीन की तलाश तो काफी हद तक हो गई पर उसे निकाल कर भूमिहीनों के बीच बांटने का काम नहीं हो सका है। समझा जाता है कि दरभंगा महाराज की अधिकांश जमीन घालमेल की भेंट चढ़ गई।
दरअसल, संत विनोबा भावे द्वारा चलाए गये भूदान आंदोलन के दौरान महाराज दरभंगा कामेश्वर सिंह ने पुराने पूर्णिया जिले में 15 हजार 411 एकड़ 71 डिसमिल जमीन दान में दी थी। इस जमीन का वितरण भूमिहीनों के बीच किया जाना था। दान दिए जाने के बाद महाराज दरभंगा की तमाम जमीन सम्पुष्ट हो गई थी और इसका मालिकाना हक भूदान यज्ञ कमेटी को मिल गया था।
विभागीय जानकारों ने बताया कि महाराज दरभंगा ने 1953-54 में यह जमीन दान में दी थी और 1958-59 में रीविजनल सर्वे हुआ जो जमीन के घालमेल का कारण बन गया। सर्वे के दौरान महाराज दरभंगा की सम्पुष्ट अधिकांश जमीन कहीं बिहार सरकार के नाम हो गई तो कहीं उसका गैररैयती खाता खुलवा लिया गया। भूदान यज्ञ कमेटी को जब इसकेी सूचना मिली तो जमीन ढूंढ़ने की मुहिम शुरू की गई।
कहीं नदी-नाला कहीं दबंगों की दखल
2008-09 के आसपास कृत्यानंदनगर प्रखंड में 75 एकड़ और 20 एकड़ के दो अलग-अलग मामले पकड़ में आए। मगर साधनों व सुविधाओं के अभाव में भूदान यज्ञ कमेटी इसे नहीं निकाल पायी। उपलब्ध दस्तावेज के मुताबिक जिले के रुपौली क्षेत्र में महाराज दरभंगा द्वारा अलग-अलग खातों के तहत क्रमश: 312 एकड़ और 410 एकड़ जमीन दान में दी गई थी।
कुल 722 एकड़ में से तीन सौ एकड़ में कहीं नदी-नाला मिला तो कहीं दबंगों का दखल। जिले के निपनिया में प्रशासनिक जांच के बाद भूदान की 111 एकड़ 29 डिसमिल जमीन का राज खुला। इसमें 15 एकड़ में नदी, सात एकड़ में सड़क और 86 एकड़ जमीन गैररैयती पायी गई। इसमें वितरण योग्य मात्र 3 एकड़ 24 डिसमिल जमीन शेष पायी गई।
आलम यह है कि भूदान यज्ञ कमेटी ने ऐसी जमीन को अयोग्य घोषित कर अपना काम खत्म कर लिया है पर इसके कारण जिले में भूमि विवाद की समस्या गुजरते वक्त के साथ गहरी हो रही है।
कहते हैं अधिकारी
भूदान में मिली जमीन की काफी हद तक सम्पुष्टि हो चुकी है और भूमिहीनों के बीच उसका वितरण भी किया जा चुका है। शेष भूखंडों का वितरण प्रक्रिया में है।
Source: LiveHindustan